नवंबर भारत में त्यौहारों का महीना है. अभी दीपावली का खुमार उतरा भी नहीं है कि छठ पूजा की तैयारी होने लगी है. इसके बाद ढोल ग्यारस और फिर शादियों का सीजन शुरू हो जाएगा.यानी की अब मिठाई का सीजन आ चुका है. पिछले कुछ सालों से एक मिठाई ने कुछ महंगी होने लोगों के दिलों में खास जगह बना ली है यह है काजूकतली. अधिक दाम की माने जाने वाली ड्रायफ्रूट वाली इस मिठाई को लोग आजकल गिफ्ट के तौर पर देना भी खूब पसंद करते हैं. लेकिन यह मिठाई सबसे पहले कब बनी और इसे किसने ईजाद किया, इस पर हमें एक रोचक कहानी मिलती है जिसका संबंध मराठाओं और मुगल दोनों से है.
ड्रायफ्रूट वाली लोकप्रिय मिठाई
काजू, शक्कर और घी से बनने वाली यह सादगी भरी मिठाई समान्य मिठाई की तुलना में महंगी होती है क्योंकि इसका प्रमुख तत्व खोया या मावा की जगह काजू जैसा महंगा ड्रायफ्रूट होता है. और यह हर तरह के त्यौहार के लिए एक पसंदीदा मिठाई बन गया है. आमतौर पर दीपावली में मिठाई के तौर पर ड्रायफ्रूट गिफ्ट में ज्यादा दिए जाते हैं, लेकिन हाल ही में इसे गिफ्ट में देने का चलन अधिक बढ़ा है.
एक नहीं दो संस्करण
कम लोग जानते हैं कि इस लोकप्रिय मिठाई के दो संस्करण हैं. दोनों ही भारत में स्वतंत्र रूप से ईजाद हुए थे और कम प्रचलित संस्करण की ईजाद के पीछे मराठाओं का योगदान बताया जाता है. 16वीं सदी में मराठाओं के रसोईघर में एक बावर्ची काम किया करता था जिसका नाम भीमराव था. इसका काम राजसी परिवार के लिए खास तरह के पकवान बनाना था.
मराठाओं के बावर्ची की ईजाद
बताया जाता है कि भीमराव भोजन के पकवानों को लेकर किए जाने वाले प्रयोगों के लिए बहुत प्रसिद्ध था. उसकी पसंदीदा मिठाई पारसी मिठाई हलुआ ए फारसी हुआ करती थी जो बादाम और शक्कर से बनती थी. भीमराव ने इसी में प्रयोग के तौर पर बादाम की जगह काजू का उपयोग किया और नतीजे के तौर पर काजू कतली का आविष्कार हो गया जिसे बहुत ज्यादा पंसद किया गया.
मुगलों से संबंधित कहानी
वहीं काजू कतली को लेकर एक और लोकप्रिय कहानी है जिसका संबंध मुगलों से बताया जाता है. 1619 में जहांगीर के शासन में मुगल सिखों को अपने लिए बहुत बड़ा खतरा मानते थे. इस वजह से जहांगीर ने सिख गुरुओं सहित कई राजाओं को भी कैद कर लंबे समय तक ग्वालियर के किले में रखा था, जिनमें सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह भी शामिल थे.
गुरु गोविंद सिंह को छोड़ने की शर्त
जब जहांगीर ने देखा कि गुरु हरगोविंद सिंह कैदीयों को प्रवचन दे रहे हैं उन्हें लगा कि इससे बगावत हो सकती है. इस पर जहांगीर ने एक गुरु की आजादी के लिए एक शर्त रख दी कि जो कई गुरु के लबादे के साथ चिपक कर किले से बाहर निकलेगा उनके साथ उस शख्स को भी आजाद कर दिया जाएगा. इस पर गुरु गोविंद सिंह ने एक बहुत ही लंबा और बड़ा लबादा तैयार करवा लिया जिसे सभी कैदी पकड़ सकें.
गुरु की चुतराई और मिठाई
इस तरह से गुरु गोविंद सिंह ने चतुराई से सभी कैदी राजाओं को भी छुड़वा लिया यह सब दिवाली के दिन हुआ था और यह दिन बंदी चोर दिवस के नाम से भी जाना जाता है. उस दिन जहांगीर के शाही बार्वची ने काजू, शक्कर और घी से बनी एक मिठाई बनाई थी जो इस मौके पर बांटी गई थी. जिसके बाद यह जल्दी ही देश के अन्य क्षेत्रों में भी प्रचलित हो गई.
काजू कतली या काजू बर्फी अपने अधिक दामों की वजह से आज भी अमीरों की मिठाई मानी जती है, लेकिन इसकी लोकप्रियता हर वर्ग में है. इसे दुनिया के कई देशों में बनाया और पसंद किया जाता है. वैसे तो यह मुख्य तौर पर दीपावली के पर्व पर ज्यादा उपयोग में लाई जाती है, लेकिन इसक अन्य त्यौहारों में भी चलन बढ़ता जा रहा है.