प्रशांत किशोर के नाम से बिहार में एक नई बयार भी चल रही है। भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड जैसे स्थापित दलों के कई बड़े-बड़े नेता जिस तरह अपनी-अपनी पार्टी छोड़कर उनका दामन थाम रहे हैं, बिहार में एक नया राजनीतिक कोण विकसित हो सकता है।
नीतीश कुमार 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गठबंधन के चेहरा होंगे। जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एकमत से यह निर्णय लिया गया है कि पार्टी नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव में उतरेगी। नीतीश कुमार का लगभग दो दशक का बिहार में किया गया काम और स्वच्छ प्रशासन देने का दावा ही पार्टी का सबसे बड़ा चुनावी हथियार होगा।
भाजपा से खतरा नहीं
भाजपा के पूर्व बिहार भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने जिस तरह नीतीश कुमार को सत्ता से हटाए बिना ही अपना 'मुरैठा' (बिहार की स्थानीय भाषा में पगड़ी का नाम) खोल दिया था। माना जा रहा है कि भाजपा ने राज्य में अपने दम पर खड़े होने का इरादा फिलहाल छोड़ दिया है। चौधरी ने यह मुरैठा नीतीश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद ही खोलने का प्रण लिया था। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर सम्राट को अपनी पगड़ी नदी की जलधारा में प्रवाहित कर देना पड़ा। इसके बदले में भाजपा को जदयू का केंद्र में बिना शर्त समर्थन मिला तो खुद सम्राट को नीतीश कुमार का सहयोगी होना स्वीकार करना पड़ा। यानी फिलहाल अब नीतीश कुमार के सामने भाजपा की तरफ से कोई खतरा नहीं है।
तेजस्वी यादव की चुनौती
लेकिन नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव के रूप में सामने आएगी जो पिछले चुनाव में अंतिम समय में मतदाताओं के बीच थोड़ी सी गलतफहमी के चलते पूर्ण बहुमत पाते-पाते रह गए थे। तेजस्वी यादव अभी भी सरकारी नौकरियों के नाम पर बिहार के युवाओं में जिस तरह लोकप्रिय हो रहे हैं, माना जा रहा है कि अगले चुनाव में वे एक बार फिर नीतीश कुमार के सामने कड़ी चुनौती पेश करेंगे।
नीतीश कुमार का लंबा कार्यकाल एनडीए गठबंधन के लिए लोगों के बीच 'एक थकाऊ' चेहरा साबित हो सकता है, जबकि उनके सामने तेजस्वी यादव का युवा जोश भारी पड़ सकता है। बिहार का जातीय समीकरण अभी दो फाड़ है, लेकिन जिस तरह तेजस्वी भुमिहार सहित कुछ दूसरी जातियों को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं, नीतीश कुमार का गणित गड़बड़ा भी सकता है।
प्रशांत किशोर फैक्टर
प्रशांत किशोर के नाम से बिहार में एक नई बयार भी चल रही है। भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड जैसे स्थापित दलों के कई बड़े-बड़े नेता जिस तरह अपनी-अपनी पार्टी छोड़कर उनका दामन थाम रहे हैं, बिहार में एक नया राजनीतिक कोण विकसित हो सकता है। प्रशांत किशोर की जनसभाओं में जिस तरह की भीड़ उमड़ रही है, वह भी जनसुराज पार्टी के लोगों का उत्साह बढ़ाने वाली है। वे युवाओं के बीच एक नई उम्मीद बनकर उभरते दिख रहे हैं। इससे सभी दलों का समीकरण गड़बड़ा सकता है।
साबित करने की बड़ी चुनौती
राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडेय ने अमर उजाला से कहा कि सभी कारकों के बीच भी जनता दल यूनाइटेड ने एक बार फिर अपने पुराने घोड़े पर दांव लगाने का निर्णय किया है। इसकी बड़ी वजह नीतीश कुमार की पार्टी और सरकार पर पकड़ तो है ही, यह पार्टी और गठबंधन की नीतीश पर हद से ज्यादा निर्भरता और उसकी विकल्पहीनता को भी दिखाता है। उनके सामने प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव के नए चेहरों के सामने अपने आपको साबित करने की बड़ी चुनौती है। लेकिन क्या नीतीश कुमार इस दौर में भी एनडीए के लिए जिताऊ चेहरा साबित होंगे, यह देखना दिलचस्प रहेगा।
Nitish Kumar: नीतीश के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगा जदयू-भाजपा गठबंधन, क्या अभी भी ट्रंप कार्ड साबित होंगे सीएम?
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