Bihar Politics: बिहार में पिछले 4-5 दिनों से चल रहे सियासी भूचाल पर आखिरकार लगाम लग गई है। नीतीश कुमार ने रविवार को सीएम पद से इस्तीफा दे कर N.D.A के साथ गठबंधन कर लिया है।
Bihar Politics: बिहार में पिछले 4-5 दिनों से चल रहे सियासी भूचाल पर आखिरकार लगाम लग गई है। नीतीश कुमार ने रविवार को सीएम पद से इस्तीफा दिया और शाम तक फिर से शपथ ग्रहण कर लिया. I.N.D.I.A गठबंधन के सूत्रधार रहे नीतीश कुमार की NDA में वापसी ने न सिर्फ विपक्षी एकता को झटका दिया है बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव में NDA की एकतरफा जीत की संभावनाओं को भी प्रबल कर दिया है।
बिहार में मौजूदा विधानसभा सीटों के आंकड़े की बात करें तो यहां पर कुल 243 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 122 सीटों के आंकड़े को पार करना होता है। मौजूदा गठबंधन में जेडीयू (45) और बीजेपी (78) साथ मिलकर बहुमत के आंकड़े को पार कर लेती है जबकि एनडीए गठबंधन में ये आंकड़ा 128 तक पहुंच जाता है। वहीं आरजेडी, कांग्रेस का गठबंधन 114 तक ही पहुंच पाता है और बहुमत से पीछे छूट जाता है।
हम यह बात यूं ही नहीं कह रहे हैं बल्कि इसको लेकर जो आंकड़े हैं वो खुद ही इस बात की गवाही देते हैं। ऐसे में हम आज आपको वो समझाने की कोशिश करेंगे कि नीतीश के साथ समझौता करने के पीछे बीजेपी का उद्देश्य सिर्फ विपक्षी एकता को कमजोर करना नहीं था बल्कि एक ही तीर से दो शिकार करना था। हालांकि इस गठबंधन में फायदा एनडीए से ज्यादा जेडीयू का है, कैसे आइए समझते हैं।
2019 में सिर्फ एक सीट जीत पाया था विपक्ष
2019 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो बिहार में बीजेपी, जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था जिसमें बीजेपी और जेडीयू ने 17-17 तो वहीं एलजेपी ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा था। तीनों पार्टियों ने 54.34 प्रतिशत के संयुक्त वोट शेयर के साथ 40 में से 39 सीटें अपने नाम की तो वहीं पर विपक्ष का सूपड़ा पूरी तरह से साफ हो गया। आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को भले ही 31.23 प्रतिशत वोट शेयर मिला लेकिन वो 19 में से एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई। कांग्रेस ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा और जेडीयू के खिलाफ एक सीट पर जीत हासिल की। यहां गौर करने वाली बात यह रही कि बिहार में बीजेपी (24.06), जेडीयू (22.26) के बाद आरजेडी (15.68) के पास ही सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत थे।
2014 में 2 सीटों पर सिमट गई थी जेडीयू
साल 2014 की बात करें तो जेडीयू ने एनडीए गठबंधन से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था और 38 सीटों पर उम्मीदवार थे, हालांकि मोदी लहर में 16.04 प्रतिशत वोट शेयर होने के बावजूद उसके खाते में सिर्फ 2 सीटें ही आई। वहीं एलजीपी, बीजेपी और अन्य पार्टियों के साथ मैदान में उतरे एनडीए गठबंधन ने 31 सीटें अपने नाम की तो वहीं आरजेडी-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के खाते में 30.24 प्रतिशत वोट शेयर होने के बावजूद सिर्फ 7 सीटें ही आई।
2009 में बीजेपी-जेडीयू थे साथ, तब 32 सीटें लगी थी हाथ
अब बात 2009 के लोकसभा चुनावों की करें तो इस दौरान बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में सबकुछ ठीक था और दोनों ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा। इन चुनावों में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने 37.97 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 32 सीटें अपने नाम की। जहां जेडीयू ने जिन 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे उनमें से 20 सीटों पर जीत हासिल की तो वहां पर बीजेपी ने 15 में से 12 अपने नाम की। कांग्रेस जो उस समय चुनाव जीतकर सत्ता में थी उसे बिहार में सिर्फ 2 ही सीटों पर जीत मिले जबकि उसने 37 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। आरजेडी-एलजेपी गठबंधन को 25.81 प्रतिशत वोट शेयर मिला लेकिन वो 4 सीटें अपने नाम कर सकी।
बिहार में 4 दशक से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही है कांग्रेस
जहां बीजेपी हर लोकसभा चुनाव के साथ बिहार में अपना प्रदर्शन बेहतर करती जा रही है तो वहीं पर कांग्रेस 1984 के चुनावों के बाद से ही अहम रोल में नजर नहीं आई है। 1990 के चुनावों में जनता दल राज्य में मुख्य पार्टी की भूमिका निभा रही थी तो वहीं पर 1999 में अलग हुई आरजेडी ने आगे ये भूमिका निभाई। 2003 से यहां की सत्ता की चाबी लगातार 3 क्षेत्रीय पार्टियों के हाथ में ही नजर आती है।
कैसे जेडीयू को इस डील से है ज्यादा फायदा
आंकड़े साफ बताते हैं कि नीतीश कुमार जब भी बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर चुनाव लड़ते हैं तो उनकी पार्टी को जीत मिलती है। सिर्फ यही नहीं राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में विपक्षी पार्टियों का शामिल न होना और उनके अनरगल बयान भी जेडीयू को नुकसान पहुंचा रहे थे। इतना ही नहीं इंडिया गठबंधन के लिए सभी पार्टियों को साथ लाने वाले नीतीश कुमार को न तो संयोजक का पद दिया गया और न ही उन्हें विपक्ष के पीएम पद का दावेदार बनाया गया। सीट शेयरिंग पर भी लगातार बनी अनिश्चितता से नीतीश कुमार को लोकसभा के साथ-साथ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भी भारी नुकसान होता नजर आ रहा था।
इंडिया गठबंधन से नीतीश कुमार का निकल जाना न सिर्फ लोकसभा चुनावों में बल्कि बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिहाज से भी विपक्ष को भारी पड़ने वाला है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि तीर भले बीजेपी का था लेकिन दोहरा शिकार जेडीयू ने किया है।