Japan Hadaka Matsuri Festival: 10 हजार अर्धनग्न पुरुषों के साथ पहली बार महिलाएं फेस्टिवल का हिस्सा बनीं और 1250 साल पुराना इतिहास बदल गया। लंबी लड़ाई के बाद महिलाओं को फेस्टिवल में हिस्सा लेने का हक मिला, लेकिन कुछ शर्तें भी रखी गईं, जिनका महिलाओं ने पालन किया। वहीं फेस्टिवल में हिस्सा लेने के बाद महिलाओं ने जो महसूस किया, उसके बारे में खुलकर बात भी की।
Women Join First Time Japan Hadaka Matsuri Festival: सिर्फ लंगोटी पहने 10 हजार पुरुष और उनके बीच में बैंगनी रंग का लंबा गाउन, सफेद शॉर्ट्स पहने महिलाएं मंत्रोच्चारण करते हुए एक दूसरे को धक्का मारते हुए आगे बढ़ते हैं। वाशोई! वाशोई! चलो, चलो…कहते हुए मंदिर के चारों ओर चक्कर लगाते हैं, ताकि बुरी आत्माएं भाग जाएं।
हर साल यह पारंपरिक अनुष्ठान मध्य जापान के कोनोमिया श्राइन में किया जाता है, जिसे जापान नेकड फेस्टिल, नग्न महोत्सव या हदाका मत्सुरी कहा जाता है। पिछले 1250 वर्षों से यह परपंरा जापान में निभाई जा रही है, लेकिन इस साल पहली बार ऐसा हुआ कि इसमें महिलाओं ने भी हिस्सा लिया, जिन्हें देखने के लिए पूरे जापान से जनसैलाब उमड़ा।
बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए अनुष्ठान
अत्सुको तमाकोशी, जिनका परिवार पीढ़ियों से हदाका मत्सुरी उत्सव में हिस्सा ले रहा है, कहते हैं कि जापान की महिलाओं ने फेस्टिवल में हिस्सा लेने की अनुमति पाने के लिए लंबा संघर्ष किया। इस फेस्टिवल में पुरुष उस एक शख्स को छूने का प्रयास करते हैं, जिसे पवित्र मानकर उस दिन भगवान का स्वरूप बनाकर पेश किया जाता है।
फेस्टिवल में हिस्सा लेने वाले पुरुष मंदिर के चारों तरफ दौड़ लगाते हैं। इस दौरान उन पर फेंके जाने वाले ठंडे पानी से खुद को शुद्ध करते हैं और फिर मुख्य मंदिर में जाते हैं, जहां उनके द्वारा लाई गई छड़ी भगवान को अर्पित की जाती है। मान्यता है कि मंदिर की परिक्रमा करके ठंडे पानी से शुद्ध होकर छड़ी अर्पित करने से बुरी आत्माएं भाग जाती हैं।
महिलाओं को देखकर पुरुषों ने विरोध भी जताया
BBC की रिपोर्ट के अनुसार, उत्सव में हिस्सा लेने वालीं 56 वर्षीय तमाकोशी बताती हैं कि महिलाओं को हदाका मत्सुरी में हिस्सा लेने की अनुमति 2 शर्तों पर मिली, एक वे पूरे कपड़े पहनेंगी और दूसरी पुरुषों से दूर रहेंगी। हालांकि जापान के कई संगठनों ने विरोध भी जताया कि महिलाएं पुरुषों के उत्सव में क्या कर रही हैं?
यह सिर्फ पुरुषों का त्योहार है, लेकिन 40 महिलाओं के ग्रुप ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और छड़ी लेकर आगे बढ़ती रहीं। फिर मंदिर में अपनी एंट्री का इंतजार किया। पूरे ग्रुप ने शिन ओटोको, ‘पुरुष देवता’ को भी छुआ, जैसे कि परंपरा है, पुरुष देवता को छूने का मतलब बुरी आत्माओं को दूर भगाना है। उस समय लगा कि वाकई जापान में समय बदल गया है।
छड़ी अर्पित करने के बाद महिलाओं ने जताई खुशी
युमिको फ़ूजी ने BBC को बताया कि हदाका मत्सुरी फेस्टिवल में हिस्सा लेकर महिलाओं ने न केवल लैंगिक बाधाओं को तोड़ा, बल्कि सामाजिक नियमों का पालन करते हुए हजारों साल पुरानी परंपरा को भी जीवित रखा। फेस्टिवल में हिस्सा लेने के लिए कई हफ्ते अभ्यास भी किया। मीडिया और दर्शकों की निगाहें भी महिलाओं पर थीं। जब महिलाओं ने कोनोमिया शिंटो मंदिर में एंट्री की तो पुरुषों की तरह उन पर ठंडे पानी का छिड़काव किया गया।
इसके बाद पवित्र छड़ी अर्पित करने के बाद महिलाएं खुशी के मारे चिल्लाने लगती हैं। इधर-उधर कूदती हैं और रोते हुए एक-दूसरे को गले लगा लेती हैं। धन्यवाद! धन्यवाद! कहते हुए मौके पर मौजूद लोगों का अभिवादन करती हैं। भावुक कर देने वाले पल थे, लेकिन सुकून मिला कि जापान में सालों पुरानी परंपरा टूटी और महिलाओं को फेस्टिवल जॉइन करने का अधिकार मिला।