अभिषेक मिश्रा या कोई अन्य यूथ उम्मीदवार मुस्लिम और सेक्युलर मतदाताओं की बन सकता है पहली पसंद
लखनऊ: (संवाददाता) अठारहवीं लोकसभा के लिए बने इंडिया बनाम एनडीए गठबंधन की लड़ाई इनदिनों इंतहाई दिलचस्प देखी जा रही है लेकिन नवाबों का शहर कहे जाने वाले लखनऊ लोकसभा सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव ने यहां से यानी लखनऊ मध्य से अपने एमएलए रविदास मेहरोत्रा को लोकसभा उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारा है जिन को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है कहा जाता है कि भाजपा उम्मीदवार राजनाथ सिंह के मुकाबले रविदास मेहरोत्रा एक कमजोर उम्मीदवार हैं उनकी उम्र अधिक होने के कारण उन्हें न सिर्फ़ सुनने और देखने में दिक्कत है बल्कि अधिक उम्र से अब उनका राजनीतिक कौशल भी प्रभावित होकर रह गया है ऐसे में यहां से किसी पढ़े लिखे योग्य नौजवान उम्मीदवार को मौका मिलना चाहिए ऐसा यहां के आम लोगों का मानना है।
यहां के कई सोशल वर्कर और सियासी सूझ बूझ रखने वाले मुस्लिम और सेक्युलर मतदाताओं का मानना है कि सपा नेता अभिषेक मिश्रा या फिर कोई अन्य यूथ उम्मीदवार यहां के लोगों की पहली पसंद बन सकता है ज्ञात रहे कि लखनऊ लोकसभा क्षेत्र में 23 फ़ीसद मुस्लिम आबादी है। लखनऊ की यह सीट सियासी एतबार से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है 2014 के हुए आम चुनाव में बीजेपी से राजनाथ सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी उन्हें 5,61,106 वोट मिले थे वहीं कांग्रेस पार्टी से रीता बहुगुणा जोशी 2,88,357 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रही थीं
अगर यहां के इतिहास की बात की जाए तो 1951-1967 तक यहां कांग्रेस पाटी ने अपनी हैट्रिक लगाई थी इसके बाद यहां पर लोकदल, जनता दल व कांग्रेस ने बारी-बारी प्रभुत्व बनाए रखा लेकिन 1991 से वर्तमान समय तक इस सीट पर BJP का लगातार कब्जा है। लखनऊ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की कुल 5 सीटें आती हैं जिसमें लखनऊ पूर्व लखनऊ मध्य लखनऊ पश्चिम लखनऊ उत्तर व लखनऊ कैंट शामिल हैं.
लखनऊ लोकसभा सीट इस वजह से और महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि देश के कई शीर्ष नेता यहां से संसद पहुंचते रहे हैं भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा इस सीट से भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित नेहरू जी की सलहज शीला कौल और देश के प्रमुख विपक्षी नेताओं में से एक रहे हेमवती नंदन बहुगुणा भी इसी सीट से संसद तक पहुंचे1951 से 1977 के बीच विजयलक्ष्मी पंडित श्योराजवती नेहरू पुलिन बिहारी बनर्जी बी.के. धवन और शीला कौल कांग्रेस के सांसद रहे जबकि 1967 के चुनाव में आनंद नारायण मुल्ला चुनाव जीते थे
1977 की कांग्रेस-विरोधी लहर में भारतीय लोकदल के प्रत्याशी के रूप में हेमवती नंदन बहुगुणा यहां से जीते, लेकिन 1980 में ही शीला कौल ने कांग्रेस की वापसी करवा दी, और 1984 में भी वही यहां से सांसद बनीं. 1989 में जनता दल के मान्धाता सिंह ने यहां कब्ज़ा किया लेकिन उसके बाद से यहां BJP का कब्ज़ा बना हुआ है।